फिर से
फिर से
आज फिर ज़ख़्म सारे हरे हो गए,
मेने ही कुरेदा अपने नाखूनों से ज़ोर से,
आज फिर बुझी राख से धुआँ उठ गया,
मेने ही चिंगारी रोशन करी अपने ही दिल की आँच से,
झील के ठहरे पानी में फिर हलचलें जो उठ गई
मेने ही तो उस पानी को जगा दिया पत्थर के ज़ोर से
मुझे ही तो भूलना था उन्हें पर
फिर याद कर गया उन्हें दिल एक कोने के शोर से
दिल के कोने का शोर ले गया यादों के उस दौर में
जहाँ थी तड़प,आँसु थे ओर थी चुभन,
ओर आज फिर उठ गया उसी कोने में दर्द ज़ोर से।।