अपने आप को ही
अपने आप को ही
अपने आपको ही हम प्यार कर रहे हैं
अपने ही अपनों को तिरस्कार कर रहे हैं
टूट रहा है अपना परिवार टुकड़ों में
अजी लानत है ऐसी खुशियों को यारों
जिसे गैरों संग ही हम इजहार कर रहे हैं
अपने आप को ही हम प्यार कर रहे हैं
एहसानों को भुलाकर माँ बाप की
हमें पता नहीं कितना क्या पाप की
अरमान सजा रहे जो अपने सन्तान के लिए
वहीं सन्तान हैं हम उनके
जिन्हें हम अपने से किनारे कर रहे हैं
अपने आप को ही हम प्यार कर रहे हैं I
यदि धड़कता है दिल कहीं हमारे सीने अगर
निष्ठुर न बन भावनाएं का क़दर तो तू कर
उन रोते आंख का तारा तू ही तो है
उनकी आशा और सहारा तू ही तो है
लौट आ वे आँखें भी तेरा इन्तजार कर रहे हैं
अपने आप को ही हम प्यार कर रहे हैं
क्यों अपने आप को ही हम प्यार कर रहे हैं
क्यों अपने आप को ही हम प्यार कर रहे हैं
