फेहरिस्त
फेहरिस्त
एक बेटी का बाप हूं साहब
बेटी की सुख के खातिर
एक फेहरिस्त बनाया करता हूं।
पाई पाई जोड़कर
कुछ अपने अरमान तोड़कर
ताकि न टूटे कांच की तरह
उसके अरमान
रोज बदलता हूं ये फेहरिस्त
कई मांग का सिंदूर
फीके पड़ जाते है
गोत्र बदलकर भी
नसीब नहीं होता पति का प्रेम
लटक जाती हैं
लटकाए जाते हैं
ईंधन की तरह
जलाए जाते हैं
और इस डर से
कभी अपना सबकुछ
बेचकर भी पूरे नहीं होते इसमें शब्द
नये शब्द जोड़ता हूं इस फेहरिस्त में
बड़ी या छोटी नहीं
इसकी खासियत है
पर बड़ी होती है हमेशा
एक बाप की हैसियत से
इसलिए हमेशा जुड़ते हैं शब्द
इस फेहरिस्त में।
