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vinod mohabe

Abstract Tragedy

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vinod mohabe

Abstract Tragedy

बोलोना प्रभु

बोलोना प्रभु

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बैल को दिया सिंग तुने

हाथी को दिया सुन्ड तुने

साप को दिया जहर तुने

बिच्छू को दिया डंक तुने

ये राज है क्या ये गहरा

बोलो ना प्रभु


शेर को दिया पंजा तुने

इन्सान को दिया दिमाख तुने

कमल खिलाया किचड में तुने

गुलाब को खिलाया कान्टो में तुने

ये राज है क्या ये गहरा

बोलो ना प्रभु


बडे से पेड पर छोटा सा फल

छोटे से बेल पर बडा सा फल

बडे से समुंदर में खारा पानी

छोटे से नदी में पिने का पानी

ये राज है क्या ये गहरा

बोलो ना प्रभु


जागने को दिन तुने बनाया

सोने के लिये रात बनाई

पैसे के लिये इन्सान बनाया

इन्सान के लिये पैसा बनाया

ये राज है क्या ये गहरा

बोलो ना प्रभु...


सोचने के लिये दिमाख बनाया

सुनने के लिये कान बनाया

बोलने के लिये मुह बनाया

देखने के लिये आख बनाई

फिर भी जज्बातो के लिये दिल बनाया

ये राज है क्या ये गहरा

बोलो ना प्रभु......


पेड को बनाया घास के लिये

घास को बनाया हिरण के लिये

हिरन को बनाया शेर के लिये

शेर को बनाया कीटक के लिये

कीटक को बनाया मिट्टी में मिलने के लिये

मिट्टी को बनाया पेड़ के लिये

ये राज है क्या ये गहरा

बोलोना प्रभु....


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