इश्क हुआ ही नहीं था
इश्क हुआ ही नहीं था
जब मिले थे तुमसे पहली बार
दिल जरा सहम सा गया था
बातों - बातों में ही शायद
कोई एहसास तो जगा था
जब जा रहे थे अपने घर की तरफ
मन कुछ उदास सा हो रहा था
कमी थी तेरी या खुद की ही
ये समझ नहीं आ रहा था
तकदीर ने भी कुछ ऐसा खेल खेला
तुझसे मिलना अब लाजिमी हो गया था
बढ़ रहे थे उस मंजिल जहाँ
तुम और मैं से हम का सफर जा रहा था
दिन-रात अब एक सा, जैसे
कोई हसीन ख्वाब आँखों में बस रहा था
तेरी हर एक बात, हर एक हरकत का
रिपीट टेलीकास्ट चल रहा था
खोए हुए से थे हम, दिल भी समझा नहीं था
खुद को प्यार की गहराई में डुबोए जा रहा था
आखिर जब मंजिल पर पहुंचे थे हम
वादे का कुबूलनामा जो संभाले रखे थे हम
न जाने क्यों सब बदला सा नजर आ रहा था
बदले थे तुम या मैं या ये जहां बदल रहा था
पीछे कुछ पन्नों को दुबारा पढ के देखा
तेरी बातें, हरकतें वो तो सबके लिए एक था
कुछ खास दिखी नहीं थी मैं उसके नजरों में
जो मेरी नजर में खास बन रहा था
हकीकत यूं तमाचे सा आया मेरी जिंदगी में
क्योंकि उसे मुझसे इश्क हुआ ही नहीं था।