ये जग की बात निराली है
ये जग की बात निराली है
मुँह में राम बगल में छुरी, ये रीत बड़ी पुरानी है,
छल की चादर ओढ़ रखा, ये जग की बात निराली है।
झूठ के सागर से ये सच्चाई की बूंद निकाली है,
यहाँ पल्ला भारी झूठ का, और सच का जेब खाली है।
बेईमानी और चालाकी से, जगत में नाम कमानी है,
इमान का ठेला बेच रहा, ये जग की बात निराली है।
नियत भले ही क्रूर हो, पर दया की तस्वीर दिखानी है,
मोल नहीं है कर्म का, और ख्याली पुलाव खानी है।
हाथ बांधे पीठ के पीछे, बस शब्दों के बाण चलानी है,
लिए डमरू खुद ही नाचे, ये जग की बात निराली है।