जुबान - ए - दिल
जुबान - ए - दिल
जरा सा दिल में कोई झांक ले,
मिले अगर दर्द, तो उसे भांप ले,
मेरी उलझनों में खुद ना उलझ कर,
वैसे ही छोड़कर, बस मुझे अपना ले,
कि दरारों को भरने की कोशिश ना हो,
ना कोई मरहम, ना दुआ का मर्म हो,
जैसी हूँ बस वैसी ही अच्छी हूँ,
ये कहने वाला, कोई तो पास हो,
चलो पास हो ना हो पर उसका एहसास तो हो,
अकेली राहों पर यादें कुछ खास हो,
जो पूछें ना क्यों, क्या, कैसे की इतिहास,
बस मुझमें गुमशुदा... और मेरी ही तलाश हो!

