तकदीर का रोना
तकदीर का रोना


क्यों आजकल हर कोई
अपनी तकदीर पर रोता है
मिलना उसे वही है, जिसका बीज
उसने खुद से बोया होता है
छोड़कर ये लकीर का लेखा-जोखा
बस मन को दृढ़ बनाना होता है
मैंने तकदीर को भी पलटते देखा है
जब सामने चट्टान सा हौसला खड़ा होता है।