ज़िंदगी है जीनी भी पड़ेगी
ज़िंदगी है जीनी भी पड़ेगी
ज़िंदगी है जीनी ही पड़ेगी
हथेलियों में खुशी की लकीर हो न हो
झूठी हंसी परोसते खुशियों की
धनक दिखानी ही पड़ेगी।
दिखावे का ज़माना है साहब
जँचती नहीं खाली जेब,
कागज़ की गड्ढी से भरकर
जेब उभारनी ही पड़ेगी।
कौन पूछता है यहाँ बेकार के हालचाल
इधर-उधर भटकते बंदे को
व्यस्तता दिखानी ही पड़ेगी।
मुखौटे के मोहताज सभी असली चेहरे अखरते हैं,
हम भी है माहिर छलने की कला दिखानी ही पड़ेगी।
झूठ की आधी दुनिया सच की मीठी भाषा क्या जाने,
वाहवाही के शोर में कंचे की खोखली
खनखन सुनानी ही पड़ेगी।
आसान नहीं आलिशान महलों के आगे
आम आदमी का जीना,
खुद ही गाल पर थप्पड़ जड़ कर
लाली दिखानी ही पड़ेगी।
ज़िंदगी का सफ़र कितना ही संगीन क्यूँ न हो
कांटों पर चलते हंसी का मरहम
लगाते उम्र पूरी बितानी ही पड़ेगी।
