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Devendra Singh

Abstract Thriller

4.8  

Devendra Singh

Abstract Thriller

अल्फ़ाज़ बोलेंगे

अल्फ़ाज़ बोलेंगे

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कभी  अंदाज़  बोलेंगे  कभी  अल्फ़ाज़  बोलेंगे

मिरे दिल की तलाशी में  तुम्हारे  राज़ बोलेंगे


पड़े जो धूल में कब से हुआ अरसा तुम्हारे बिन

कभी तुम छेड़ कर देखो  पुराने  साज़ बोलेंगे


भले तुमने कभी अपना मुझे शहजांह ना समझा

क़यामत तक मग़र तुमको ही हम मुमताज़ बोलेंगे


लगाया ही नहीं जिसने कभी दिल नाज़नीनों से

उसे 

;हम  इस ज़माने का बड़ा उस्ताज़ बोलेंगे


कभी होगा मिरा मिलना जो तुझसे चंद लम्हों का

अभी ख़ामोश हैं लेकिन ये तख़्तो ताज़ बोलेंगे


ज़हर जो घोलते हैं रात दिन मेरी ख़िलाफ़त का

वही   तो  यार  हैं  मेरे  दबी  आवाज़  बोलेंगे


हमारी चाहतों की बदलियां बरसें या ना  बरसें

नहीं जो उड़ सका उसको भी सब परवाज़ बोलेंगे।।


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