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Devendra Singh

Abstract

4.5  

Devendra Singh

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होशियारी

होशियारी

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बस करो अब बहुत ज्यादा होशियारी हो गयी

दोस्तों से दुश्मनी दुश्मन से यारी हो गयी


बेइमानी और ज्यादा करके क्या है फ़ायदा

माल खाया लूट का तो तोंद भारी हो गयी


लाज़ ढकने को पड़े लाले अमीरों के यहां

हैसियत से भी ज़ियादा देनदारी हो गयी


भांग का गोला कभी देखा तलक हमने नहीं

मज़हबी उन्माद की हम पे ख़ुमारी हो गयी


दांव उल्टा भी पड़ेगा ये कभी सोंचा न था

बेबज़ह तलवार क्यों अपनी दुधारी हो गयी.


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