जो न सोचा था कभी
जो न सोचा था कभी
जो न सोचा था कभी सो हो गया है
तंत्र बिगड़ा है कहीं जन खो गया है ।
तीर अब ईमानदारों पर दगे हैं
इसलिए ईमान भी बिकने लगे हैं ।
मालिकों की नीति प्रतिगामी हुई है
बिक चुका है देश नीलामी हुई है ।
रात में चोरी कराएं वे भगत हैं
साधु जोगी संत स्वामी रास-रत हैं ।
मौन है भयभीत हत्यारे निडर हैं
ठग लुटेरों के सगे चमचे मुखर हैं ।
जो न मरना चाहिए था मर गया है
जो न डरना चाहिए था डर गया है ।
झूठ भी व्यापार है अब जोर पर है
और सबका ठीकरा कमजोर पर है ।
मानिए मत मानिए यह ही हुआ है
जो न होना चाहिए वह भी हुआ है ।