दिलफेंक आशिक़
दिलफेंक आशिक़
कहर ढाती, इतराती,
नीली साड़ी पहन के,
स्टेज पर जो खड़ी थी
दोस्त को लिफ़ाफा दिया
तो जाना वो उम्र
में मुझसे बड़ी थी।
दोस्त की साली थी वो,
आधी घरवाली थी वो
दोनों हाथ में लड्डू थे
अब उसे दुनिया की
कहां पड़ी थी?
टूटा दिल लेकर मैं
स्टेज से उतरा ही था
और दिल चुरा के ले गई वो
जिसकी प्लेट में
चावल- कढ़ी थी।
घुंघराले बालों वाली थी वो,
थोड़ी नखराली थी वो
भुक्खड़ सी जान पड़ी,
जिस लहज़े से प्लेट भरी थी।
मैंने कहा एकस्कुज मी,
आपको देख के अभी अभी
कुछ बात ज़हन में आई,
एक बड़ा सा गुलाबजामुन
गटक कर उसने
ऐसे लुक्स दिए
कि भाँप गया मैं उसके
तेवर और बात ज़रा घुमाई,
कहा शराफ़त का तो ज़माना नहीं,
अब कितनी दूँ दुहाई?
मैं तो बस ये पूछ रहा था कि
ये पीली वाली मिठाई
कौन से काउंटर से उठाई ?