अपनों के दिल
अपनों के दिल
अपनों के दिल में अनजाने हो गए
खुशियों का आना जमाने हो गए।।
हर तरफ है नफरतों का बीज अब
इनके ही अब तो ठिकाने हो गए।।
थे कभी हम फूल से इनके लिए
बन के कांटा बस बेगाने हो गए।।
रह गए मझधार में सब छोड़कर
एक तेरे खातिर दीवाने हो गए।।
लिखें हर दास्तां ग़ज़ल गीतों में हम
फकत अब ये ही बहाने हो गए।।
बन्ध कर रूह से हम जीने लगे
दर्द "अंजली" और सुहाने हो गए।।