दिशाहीन आदमी
दिशाहीन आदमी
जाने किस दौर से ज़माना गुज़रता जा रहा है
भाई-भाई के खून का प्यासा हुआ जा रहा है।
नहीं शर्म कोई सरे आम इश्क फरमाया जा रहा है
छोड़ बच्चों को प्रेमी के साथ भागा जा रहा है।
हैरान हूँ देखकर आदमी अब हैवान हुआ जा रहा है
बाप भी बेटी की अस्मत लूटता जा रहा है।
दोस्ती नहीं बस अब मतलब निकाला जा रहा है
इन्सानियत को भी शक की निगाह से देखा जा रहा है।
बेटा ही माँ-बाप को वृद्धाश्रम छोड़ने जा रहा है
दिख रहा है साफ घोर कलयुग आ रहा है।
मॉर्डन बनने की चाह में कपड़ा तन से उतरता जा रहा है
सोचती हूँ क्यों आदमी दिशाहीन हुआ जा रहा है।
