संभोग भगाए रोग
संभोग भगाए रोग
संभोग भगाए रोग,
आ इसका कर लें योग,
संभोग है अभिलाषा,
जो समझे दिल की भाषा।
बेचैन सा जब हो दिल,
संभोग से जाए खिल,
इसमे है पूरी आज़ादी,
चल हो जायें इसके आदी |
संभोग से है जीवन,
बिन इसके तड़पे ये मन,
ये सृष्टी का निर्माता,
एक उम्र बाद सबको भाता।
जो संभोग से है बचता,
वो वैवाहिक सुख नही रखता,
पर जो विवाह बंधन को अपनाता,
उसका संभोग से जुड़ता नाता।
इसमे शर्म नहीं कोई भी,
इसमे ईश्वर की भी होती कहीं मरजी,
ये पहले ज़िस्म को पिघलाता,
फिर उसे सोने सा बनाता।
संभोग लाये खूबसूरती,
करे कामवासना की पूर्ति,
इससे साधू भी बच ना पाये,
इसलिये हर मर्ज की दवा कहलाये।
फिर तू क्यूँ इतना सोचे ?
चला आ अब आँखें मीचे,
संसारिक सुख को लें हम भी भोग,
क्योंकि संभोग भगाये रोग।
