बचपन
बचपन
बचपन हमसे दूर नहीं गया कभी हाँ मगर
हम सब बचपन को खुद से दूर करते गए।
कभी ज़िम्मेदारी का बोझ तो कभी
समाज की अर्थहीन सोच को निरर्थक ही
ढोते रहे।।
बचपन जीने के बहाने हम आज भी खोजते है,
कभी बारिश की बूंदों को हथेलियों में भरकर,
तो कभी तारों के बीच से गुजरने वाले
हवाई जहाज़ को देख उंगलियों के पोरों से
उसे छूते हुए।
हाँ एक वक्त ऐसा आता है जब हमारा
बचपन,
हमारी ही गोद मे खिलखिलाता है,
जैसे कह रहा हो,
चल पगली, जी ले फिर, कुछ पल
अपने बचपन के मेरे साथ,
आओ चलो, कुछ यादों तले ढूंढ कर
ले आए
कुछ शैतानियाँ और वो कुछ पुरानी
कहानियाँ।।
बचपन हमसे दूर गया ही नहीं
किसी न किसी रूप में हमेशा करीब होता है
आपका बचपन, आपके बच्चों से होकर
आपके नाती पोते के रूप में हर पल
साथ साथ चलता है ।।