लम्हों की तितलियाँ
लम्हों की तितलियाँ
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यूँ तो तितलियाँ
आती हैं बस बहारों में
पर लम्हों की तितलियाँ
तो मिल जाती है मज़ारों में
और इंसान को खोज लेती हैं
रूह के बजारों में
जो मन को छू लेती हैं
चाहे वो हो कितने ही पहरों में
जब ये यादों का रस भर जाती हैं
रंग बदल जाते हैं नज़ारों में
मुर्दा दिल भी जी उठते हैं
बनकर नूर हज़रों में
