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Ramanpreet -

Others

2.5  

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चारदीवारी

चारदीवारी

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चारदीवारी में कैद हुए सालों हो गये

फिर भी आस का दामन छूटता नहीं 

आज़ाद आस्माँ में उड़ने का ख़्वाब

मेरी नींदों से आज भी रूठता नहीं  

खुदा जाने ये सज़ा आज़ाब है या खैर

तसल्ली बक्श ये है की मैं मुजरिम नहीं 

तन्हाई ने की हर पल डसने की कोशिश 

शुक्र है हौसलों ने कभी हाथ छोड़ा नहीं

नकरात्मक सोच की थी चुम्बक सी कशिश 

फिर भी सकारत्मक सोच से मन की प्रीत टूटी नहीं

वक़्त की धूप में जब फ़ूल सूखे तो मिली तपीश

लेकिन मैं खुश हूँ की मेरा दिल वो कमल है, 

जो कीचड़ में रहकर भी कभी कुम्हलाता नहीं 


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