STORYMIRROR

Ramanpreet -

Others

2.5  

Ramanpreet -

Others

चारदीवारी

चारदीवारी

1 min
226


चारदीवारी में कैद हुए सालों हो गये

फिर भी आस का दामन छूटता नहीं 

आज़ाद आस्माँ में उड़ने का ख़्वाब

मेरी नींदों से आज भी रूठता नहीं  

खुदा जाने ये सज़ा आज़ाब है या खैर

तसल्ली बक्श ये है की मैं मुजरिम नहीं 

तन्हाई ने की हर पल डसने की कोशिश 

शुक्र है हौसलों ने कभी हाथ छोड़ा नहीं

नकरात्मक सोच की थी चुम्बक सी कशिश 

फिर भी सकारत्मक सोच से मन की प्रीत टूटी नहीं

वक़्त की धूप में जब फ़ूल सूखे तो मिली तपीश

लेकिन मैं खुश हूँ की मेरा दिल वो कमल है, 

जो कीचड़ में रहकर भी कभी कुम्हलाता नहीं 


Rate this content
Log in