जुदाई
जुदाई
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आज दिल कुछ बंद सा है
साँसों की रफ्तार भी मंद सी है
जाने क्या वो बात हुई
जिसकी मीठी चुभन दिल को छुई
और उसके मुँह मोड़ते ही लगा
जैसे मेरे भीतर ही कांप गया कोई
उसके वापस आने की आस रखूँ
या उन चंद मुलाकातों का एहसास रखूँ
जो अब भी दिल के करीब है
और जिसमें हमारे विश्वास की नीव है
सच कहूँ तो दोस्तो आज जाना हमने
ये जुदाई का मौसम कितना अजीब है
मानो ये मौसम - वक़्त नहीं कोई रकीब है।