नयी उभरती लेखक हूँ
Share with friendsभूतकाल को बिना पछतावा किए भूल जाओ, वर्तमान को आत्मविश्वास के साथ जीओ, और भविष्य का बिना डरे स्वागत करो।भावु
मेरी सोच की सीमा के इस पार भी तू उस पार भी तू इश्क में आलस कैसी जब दिल में भी तू मन में भी तू रूह में भी तू ये जादू है इश्क का भावु।
रखा था जब हाथ तेरी हथेलियों पर पूरा ब्रह्मांड रचा लिया था अपना एक जन्म से क्या होगा सदियों का सफ़र मांगा था इश्क में इतना हक तो जायज़ है भावु।
तुम्हारे इश्क की छाँव में रहने दो मुझे दिल के अहसास आज कहने दो मंज़िल का पता नहीं अन्जान सफ़र है तुम्हारे कदमों की चाप पे ताउम्र चलने दो मुझे हाँ यही तो इश्क है भावु।