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प्रीत का रोग

प्रीत का रोग

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प्रीत का रोग लगा मुझे,

नींदे उड़ी रात की।

तुम अलबेली शाम हो,

मेरे प्यारे गाँव की।।


प्रेमरस में खो जाता,

इंतजार में कटे रतिया।

हे खुदा उससे मिला,

बरसती है ये अँखियाँ।।


चाँद देख उसे याद करूँ,

तारों की मैं सैर करूँ।

तेरे प्यार में पागल हूँ,

सपनो में तेरी माँग भरूँ।।


तेरी एक झलक पाने,

दिन भर मैं राहे तकता।

पागल प्रेमी आवारा मैं,

खाना पीना भी तजता।।


तुझसे मैं आँखे मिलाता,

शर्म से नैन झुक जाते।

कोमल हाथों के स्पर्श से,

रोम-रोम मेरा महकाते।।


तेरे ख़ातिर जीवित हूँ मैं,

तेरे ही सपने बुनता।

चलता अगर मेरा राज,

हमसफ़र तुझे चुनता।।


सुनो तुम मेरी बन जाओ,

परी बना कर रखूँगा।

जीवन के इस सफर में,

पलकों पे बैठा के रखूँगा।।


बारिश का मौसम सुहाना,

आ गयी बरसात भी।

तुम आ जाओ ना सजनी,

देर है किस बात की।।


जसवंत का जीवन अधूरा,

आस तेरे साथ की।

तुम अलबेली शाम हो,

मेरे प्यारे गाँव की।।


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