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Sarvesh Saxena

Abstract Drama Romance

4  

Sarvesh Saxena

Abstract Drama Romance

रिश्तों मे अपनापन हो

रिश्तों मे अपनापन हो

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धीरे-धीरे बदली दुनिया, 

बदल गए सब रिश्ते नाते, 

कल पुर्जों की दुनिया में अब, 

इंसा को रिश्ते कहां है भाते, 

सब है शामिल दौड़ में जैसे, 

बदल गया सब जीवन हो, 

काश समय पहले सा आए, 

रिश्तो में अपनापन हो…… 


बच्चों की खातिर ही अब, 

मां-बाप कमाने जाते हैं, 

उसी कमाने के चक्कर में, 

बच्चों से बचपन छिन जाते हैं, 

खेलें टीवी संग मोबाइल अकेले, 

घर में ही सब साधन हों, 

काश समय पहले सा आए, 

रिश्तो में अपनापन हो…. 


परे भावनाओं से बच्चे, 

ऐसे ही पल जाते हैं,

वही बड़े होकर फिर कैसे, 

आंखें हमें दिखाते हैं, 

काट रहे हैं ऐसे जीवन सब, 

जैसे सूखे सावन हो, 

काश समय पहले सा आए, 

रिश्तो में अपनापन हो…. 


मात-पिता ना भाई बहन अब, 

फ़िकर जेब की रहती है, 

अब तो जरा जरा बातों पर, 

मौत बरसती रहती है, 

कहने की क्षमता बढ़ी चले, 

सहने की क्षमता ही कम हो, 

काश समय पहले सा आए, 

रिश्तो में अपनापन हो…. 


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