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मौसर रो चक्कर

मौसर रो चक्कर

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लापसी न नुंगती खा रिया

और खा रिया दाल पूड़ी ।

किकर गला सु कव्वो उतरे

टूटे जद किणरी चूड़ी ।।


मौसर रा चटकारा लेवो

खूब दबा न जीमण जीमो ।

आधी उमर में बापू मर गियो

कोणी करवायो उणरो बिमो ।।


घरका रो रिया घणा जोर सु

वो दुखड़ो कोनी दिख रियो ।

मिनखा ने घणी टेंशन वे जावे

खाटी छा वालो नी दिख रियो ।।


मर गिया जो पाछा नी आवे

पण घरका ने दुःखी मति करो ।

मौसर करवा में पसीनो छूटे न

सगळा के रिया कलशिया भरो ।।


मरवा री टेंशन भूल जावे

समाज री टेंशन खा जावे ।

बारा दिन ताई सूबे शाम

बीड़ी, चाय न अम्ला छावे ।।


समाज रा तौर तरीका सु

धुजवा लागे गरीब परिवार ।

सगळो टोटको करणो पड़सी

भले घर में कोनी दाणा चार ।।


इण मौसर रा चक्कर माय

बेटा रे घणो कर्जो चढ़ जावे ।

रकमा गिरवी मेलनी पड़े न

खेत कुडा वेचना पड़ जावे ।।


परो बन्द करो इण मौसर ने

"जसवंत" करे समाज सु अरदास ।

मरवा वालों तो स्वर्ग जावेलो पण

लारला बण जासी कर्जा सु लाश ।।


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