बेनाम रिश्ता
बेनाम रिश्ता
सब कुछ थी वह पगली, मेरी जिंदगी व मेरा रब
मेरे दिल की थी धड़कन, मेरा प्यार मेरा मजहब।
मेरा पहला प्यार थी, किसी की अमानत बन गयी
मेरे बुने सपनों की मंजिल, पलभर में क्यों ढह गयी।
जीते जी क्यूँ मार दिया, ऐसा भी क्या गुनाह किया
दो पंछियों की रूह को, जिस्म से क्यूँ अलग किया।
मेरी भी तो इच्छा होती है,उसके संग-संग जीने की
जब से वो छोड़कर चली, लत लगीं है मुझे पीने की।
कुछ नहीं सूझता मुझे, बस याद उसकी सताती है
मेरी बरसती आँखे देखों, हालात मेरा बतलाती हैं।
सपने बहुत देखे थे उसके, साथ जीने और मरने के
कैसे कटेगी जिंदगी अब, टूटे सपने सिन्दूर भरने के।
जीवन के इस सफर में, बची है सिर्फ एक ख्वाहिश
उसे बना कैसे भी मेरी, कर दे रब छोटी सी साज़िश।
एक ख्वाहिश पूरी करदे तुझपे करूँ जीवन कुर्बान
जब-जब भी मैं आँखे खोलूं, सामने हो मेरी जान।
गर ये भी ना हो सके तो,अंतिम इच्छा पूरी कर ले
सारी खुशियां देदे उसे, मुझको तेरी शरण में ले ले।