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Arunima Bahadur

Drama

4  

Arunima Bahadur

Drama

गड़बड़झाला

गड़बड़झाला

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होठों पर है प्रणय निवेदन,

हाथों में है प्रणय की माला।

जो भी नारी सम्मुख आये,

पहनानी बस यह पुष्प माला।।


कितना बड़ा है समाज आज,

कितना हो गया उलझा झाला।

ढाई अक्षर जो न जिया कभी,

बनाता प्रेम का वो मकड़ जाला।


एक नही तो दूसरी ही सही,

फसेंगी कभी तो जाल में।

कल्पना की दुनियॉ को,

जिसने खुद को उलझा डाला।


कितना मिथ्या हैं आज यहाँ पर,

फसता हरदम कोई भोलाभाला।

कभी नारी तो कभी नर को,

शिकार बनाता कितना गड़बड़झाला।।


जागो मानव,अब तो जागो,

सत्य के ही पुजारी बनो।

प्रेम खोजने मत और उलझो,

अंतस में ही दर्शन करो।।


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