रास्ते के मुसाफिर
रास्ते के मुसाफिर
रास्ते के मुसाफिर हैं
कभी यहां तो कभी वहां
खोए हुए सितारे हैं।
भूले भटके इन रास्तो पे, गुम हो रहे प्यारे हैं
कभी धूप कभी छांव के सहारे हैं
भूख - प्यास को झेलते हुए, मंजिल मिले यही चाह रहे हैं
कभी आंधी - तूफान तो कभी बरखा की बौछारे हैं
दो राहों पे खड़े बेचारे हैं
कभी दाएं कभी बाएं जा रहे हैं
छोटे छोटे ख्वाब सजा रहे हैं
आधी नींद से उठते हुए, बढ़ते चले जा रहे हैं
कभी खुद सोकर दूसरे को जगा रहे हैं
निडरता से अपना राह चुनते जा रहे हैं
रास्ते के मुसाफिर हैं
कभी यहां तो कभी वहां
खोए हुए सितारे हैं।