धुंध
धुंध
धुंध बुन रही है, कुछ ख़्वाब, कुछ ख़्याल,
जो भुला चुके कोई, वह याद सता रही है।
धुंध भी जो जम चुकी थी, जिन यादों पर,
क्यों उड़ कर, उन यादों को बता रही है।
कि आ जाओ फिर से ज़हन में मेरे और,
रुसवा करो मुझे, मेरी कोई ख़ता रही है।
धुंध बुन रही है, कुछ ख़्वाब, कुछ ख़्याल,
जो भुला चुके कोई, वह याद सता रही है।
धुंध भी जो जम चुकी थी, जिन यादों पर,
क्यों उड़ कर, उन यादों को बता रही है।
कि आ जाओ फिर से ज़हन में मेरे और,
रुसवा करो मुझे, मेरी कोई ख़ता रही है।