इश्क
इश्क
इश्क को लोग गुड़ से मीठा कहते है।
मगर हम तो इसे कड़वा सच मानते है।।
नासमझ हो कर भी इश्क का मतलब समझ गए है हम।
क्या करें इश्क ना चाहते हुए भी कर बैठे है हम।
क्यों की रिस्क से इश्क करना चाहते है हम।।
हम चाह कर भी इश्क को नाम ना दे पाए।
क्या करे डरते है हम की इस इश्क में कहीं बदनाम ना हो जाए।।
हम तो चले थे मरने इस इश्क के बगैर ही ,
मगर इस इश्क में मर मिटना ही आखिर में हमें लगा सही।।