फिर एक बार
फिर एक बार
झनझन करके बाज उठे हैं
सोये थे जो मन के तार
यादें स्वप्निल, आंसू झिलमिल
सुलग उठे हैं प्रश्न हजार
१- रूप बदलकर, नया सर्वथा
क्यों ठिठके सपनों के द्वार
घाव पुराने लगे कसकने
लगे उमगने शत उदगार
२- सुंदर था जीवन का तराना
बना दिया क्योंकर व्यापार ?
चुक गयीअब पूंजी भावों की
हुआ बेसुरा सुर- संसार
३- अवचेतन में दबी लालसा
भभक उठी जैसे अंगार
सावन के पदचिन्हों पर चल
जो आये हो, फिर एक बार !