कुछ ऐसा आवाहन करो
कुछ ऐसा आवाहन करो
सुषुप्त राष्ट्र चेतना
उठो कोई जतन करो
असंख्य दीप जल उठें
कुछ ऐसा आवाहन करो
1– धधक रहा है देश
वैमनस्य के प्रमाद से
जाति धर्म आस्था
के नाम हर विवाद से
जो भारती के लाल हो–
तो द्वेष का शमन करो
असंख्य दीप……………………
2– डरी हुई दिशाएँ हैं
उदास है चमन चमन
नृशंस रक्तपात से–
सहम रहे धरा गगन
कपालिनी की सौं उठा
शत्रु का दमन करो
असंख्य दीप………………………
3– फंसा हुआ समाज ये
अनीतियों के जाल में
भ्रष्ट कदाचारियों के
नित नये बवाल में
अवाम की पुकार पे
निसार हर सपन करो
असंख्य……………………………
4– सेंध लग चुकी है जो
हमारे संविधान में–
असंख्य छिद्र हो चले हैं
न्याय के वितान में
सच को आत्मसात कर
असत्य को दफन करो
असंख्य…………………
