सखि आई मनभावन होली
सखि आई मनभावन होली
अब पलाश फूले वन उपवन
दहक उठी चहुं दिस रक्ताभा
कोयल कूहू कर बतलाये -
“पुष्प- धनुष, रतिपति ने साधा”
फागुन की आहट सुन मचले
नर, नारी, बच्चों की टोली
सखि आई मनभावन होली
हरसिंगार बिछे घर-आंगन
पाहुन को देते आमन्त्रण
गुझिया बने, बने ठंडाई
सब आयेंगे लोग- लुगाई
रंगों की बौछारों में फिर
हंसी, बतकही और ठिठोली
सखि आई मनभावन होली
नाचो गाओ, फाग सुनाओ
ढोल- मंजीरा झूम बजाओ
बार बार ना रुत ये आये
बार बार ना रस बरसाए
डोले है यह तन मन ऐसे -
ज्यों गोपी कान्हा संग डोली
सखी आई मनभावन होली
