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Vinita Shukla

Tragedy

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Vinita Shukla

Tragedy

पूछती ताउम्र स्त्री

पूछती ताउम्र स्त्री

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 पूछती ताउम्र स्त्री-

 कहाॅं उसकी जड़ें?

 डोली उसकी, उठी थी-

 जिस आशियाॅं से 

याकि जाना, 

चार कन्धों पर, जहाॅं से 

 वह तरल, द्रव सी 

कितने ही, सांचों में ढली

कभी माँ, कभी बहन

कभी पत्नी, कभी प्रेयसी

कोई परिभाषा कभी ना,

बाॅंध उसको, है सकी

पूछती ताउम्र स्त्री... युगों से वह , 

ढूंढती आई है जिसको-

कहो तुम ही,

क्या भला, पहचान उसकी-

एक पौधा, जो रोप

दिया गया

इस जमीन से,

उस जमीन पर

या एक नदी -

सागर के गर्भ में, 

हो गई जो

तितर - बितर ?

पूछती ताउम्र स्त्री...


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