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SUNIL JI GARG

Abstract Drama Tragedy

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SUNIL JI GARG

Abstract Drama Tragedy

शिशिर में त्रासदी

शिशिर में त्रासदी

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शिशिर के थपेडे़

फुटपाथ के किनारे,

चली आ रही कौन अभागिन 

अब भाग्य के सहारे 


स्वप्नों से बालक गोद में सोता 

अंगुली पकड़े बेटी साथ, 

परमेश्वर यह कैसा न्याय

पास नहीं हैं उसके नाथ


बच्चे की ममता के रुप को 

क्यों न ऐसा प्यार मिला, 

कदम-कदम पर उस विधवा को 

क्यों ऐसा व्यवहार मिला 


फटकारें सुन-सुन कर 

उसने थी रात बितायी ,

फुटपाथ पर भी पड़ गई

ऐसी ही बात सुनाई


संकेत शिशिर भी दे रहा 

हो जाए न उस पर अन्याय,

शिशिर -पवन तो देखो कब से 

कर रहा है साँय-साँय


यह वही शिशिर 

जिसको कि लोग मचलते हैं,

जिस पर काले-काले साये बनकर 

फुटपाथी चलते हैं


ऊषा ही कहेगी शिशिर से 

वे जिएंगे या मरेंगे,

प्रातः वहाँ फुटपाथी जाकर 

यों ही तो कहेंगे -


ऊषा ने क्या सचमुच ही,

रंग बिखेरा है,

बर्फ की तह पर क्यों 

लगता रक्त का घेरा है


अरे! क्या यह वही अभागिन 

और इसके दो बालक हैं,

परमेश्वर नहीं क्या अब

सबके प्रतिपालक हैं


शिशिर ने इनसे शायद 

ठीक ही न्याय किया,

और फिर उनको 

अपनी चादर से कफन दिया।


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