गमगीन वृक्ष
गमगीन वृक्ष


एक दिन आँसू ने पूछा
क्यों सहा दर्द इतना
कि सैलाब आ गया।
देह पिंजर-सी हो गई ,
अजर-अमर आत्मा
क्षतिग्रस्त हो गई।
नीर जो वाष्प बन उड़े
टीस भरी वृष्टि कर गए।
उस बरखा में
जो तरु जन्मे
वे गमगीन बयार
व फल दे गए।
पूरी धरा ही शौक
में विलीन हो गई।
फिर उत्पन्न हुए
अस्थिर विचार और भाव
जो मनुष्य को व्याकुल कर गए
सुख, शांति , प्रेम की
भाषा भूल गए।
कभी रूदनऔर
कभी वेग में बदल गए।
रूदन जीव को निरुत्साहित कर
मृत्यु की और ले गए।
वेग क्रोध का रूप धारण कर
काली बन गए।
भूमंडल को श्मशान बना गए।
कृष्णा तभी कह गए
दर्द देना और सहना
दोनों पाप कर्म में गीने जाए।
पर मनु की संतान
अभी तक समझ न पाए।
गमगीन वृक्ष रोपते ही जाए।