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Aprajita Rajoria

Tragedy

4  

Aprajita Rajoria

Tragedy

जीवन की अठखेलियाँ

जीवन की अठखेलियाँ

2 mins
445


वक्त कहाँ रुकता है कभी !

साथ चलते चलते,

हाथ छूट जाते हैं सभी.....


एक वो वक्त था....

जब सब कुछ सुनहेरा था !

बिखरी ख़ुशियाँ रंगिनीयों सी,

जीवन रूपी आसमान में,

हो मानो इंद्रधानुशी छटा सी !


एक वक्त वो भी था,

पास अपने सब कुछ था।

मगर जीवन संघर्ष की भागमभाग,

बढ़ती ज़िम्मेदारियों में बंटते दिन रात...

गर्मी भरे दिन और सर्दियों में वो सुलगती आग....

वक्त की भीड़ से कुछ लम्हे चुराए, 

रख सम्भाले दिल की तिजोरी में आज !


वक्त कहाँ रुकता है कभी !

साथ चलते चलते,

हाथ छूट जाते हैं सभी !


आज जब वक़्त ही वक़्त है,

तो औरों के पास इस वक़्त में शामिल होने का वक़्त नहीं।

चारों और अतीत का है सन्नाटा,

चंद आँसुओ और यादों के सिवा कोई साथ नहीं !


कैसा है यह जीवन का आख़री पड़ाव !

जब हृदय की धड़कन और रोगों का है तांडव !

डाक्टर्ज़ और नर्स का ही करम...

जो इन नलीयों के मकड़ जाल से अस्तित्व में भी

हो रहा है जीने का भरम !


वक्त कहाँ रुकता है कभी !

साथ चलते चलते,

हाथ छूट जाते हैं सभी !


इस दर्द में भी बंद आँखों को खोलने की कोशिश,

बंद होटों से कुछ बोलने की कोशिश !

अरसा हुआ मुस्कुराए हुए,

वक़्त ने सब कुछ याद रखा,

बस एक हँसना भूला दिया !

तुम्हें सबसे बढ़ कर प्यार किया 

और तुमने साथ छोड़ कर सबसे बड़ा दुःख दिया !


वक्त कहाँ रुकता है कभी !

साथ चलते चलते,

हाथ छूट जाते हैं सभी !


वक़्त वक़्त की बात है

कोई दुःख सह जाता है,

कोई कह जाता है,

और कोई दिल में नासूर बन रह जाता है !


आज तुम साथ नहीं,

पर तुम मेरे ख़यालों से दूर नहीं !

नहीं चाहिए तस्वीर तुम्हारी तुम्हें देखने के लिए,

बस आँखें बंद करती हूँ तुम्हारे अक्स से मिलने के लिए !

धड़कनें मेरी , नाम लेती हैं तुम्हारा !

कहीं भी रहो तुम, यह दिल सदा है तुम्हारा !

फिर भी कभी जब दिल में सबर का बांध टूटा,

मैंने ख़ुद को यही कह समझाया....


वक्त कहाँ रुकता है कभी !

साथ चलते चलते,

हाथ छूट जाते हैं सभी !


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