मान भी जाओ न
मान भी जाओ न
रूठते तो तुम पहले भी थे,
पर दो पल बाद मान भी जाते थे,
मेरे चहरे पर परेशानी देख,
तुम एक पल भी रह रह नहीं पाते थे,
देखो आज मैंने तुम्हारे पसंद की
पोरन, तर्री ,पोहा और श्रीखंड भी बनाया है।
"तुम्हारे जैसा स्वाद ,किसी में नहीं।"
सुनने को कान बेताब है ,
एक एक निवाला कहते हुए,
तुम्हारी प्यारी मुस्कान,
देखने को आंखे तरस रही है।
आज मेरी क्या गलती है ?
ऐसे क्यों रूठे हो,
कब से मन रही हूं,
पर उठ ही नहीं रहे हो,
क्यों ज़िद्द पर अड़े हो,
मेरे सब्र का बाँध टूट रहा है,
-color: rgba(255, 255, 255, 0);">आँसुओ के सैलाब में,
तुम्हारा चेहरा धुंधला हो रहा है।
एक पल को भी अकेले न छोड़ने की कसम खाई थी,
शादी के बाद ,मइके दो दिन से ज़्यादा नहीं रह पाई,
"तेरे बिन मोरा जिया लागे न ", हर वक़्त गाते
हुए मुझे लेने चले आते थे।
आज मई गए रही हूँ,
पर तुम सुन ही नहीं रहे हो।
हर बात मुझे बताते थे, पर
आज मुझे अकेला छोड़ जाने
की तैयारी आखिर क्यों ?
बेरहम लोग मुझ से तुम्हे छीन
दूर ले जा रहे है,
नियती के कटु सत्य को जानते हुए भी
मैं अकेले,तुमसे दूर नहीं रह सकती,
उठो न, मान भी जाओ न।
अब तो उठ जाओ, मेरी खातिर।