यादों का आइना
यादों का आइना
तुमने ही सूनी मांग भरी
जीवन को नव रंग दिऐ।
डूबी रंगों की मस्ती में
मेरे अरमानों को आशाओं के पंख दिए!
बिन्दिया माथे चमकी
कंगना भी शोर मचाने लगा।
गालों की लाली खुशियां बनी,
इंद्रधानुशी जीवन इठलाने लगा!
जीवन के सुख -दुख साथ सहे,
मिलकर मुश्किलों से लड़ते गए ।
मैं तो आख़री मोड़ पर खड़ी रही...
पर तुम क्यों साथ छोढ़ चले गए!
सूनीअखियां सूनी हुई मांग
सूने-सूने ये दिन और रात
हर पल,हर क्षण
बस साथ तुम्हारा होता था...
तुम ही मेरे रात दिन,
तुमसे ही जीवन में उजियारा होता था!
तुम हो, तुम थे
, तुम सदा रहोगे!
तुम ही मेरे अतीत रहे,
तुम ही सदा वर्तमान रहोगे!
तुम अशोक(पेड़) सी अपनी ख्याति फैलाते रहे,
मैं लता सी संग बढ़ती रही!
जीवन की नय्या अपनी,
हस्ती खेलती चलती रही....
पर वक्त की आंधी क्या आई,
जिसने पेड़ को ज़मींदोज़ किया।
जीवन की नय्या को मेरी,
मझदार में ही डुबो दिया!
आँखों के आसुओं को और रातों की नींदों को,
इस लम्हे ने पराया कर दिया...
जाते जाते दिल पे मेरे इन शब्दों
से वार किया..
चंदन की माला के पीछे
तुम कितना भी छिप जाओगे,
पर स्मृति के घर से दूर,
कितना दूर रह पाओगे?