रेप
रेप
बचपन से ही लोगों ने समझाया …
पापा की इज्जत हूं, बचा के रखना हर किसी ने बतलाया,
हर शौक को खत्म कर मैंने, सूट और 2 मीटर का दुप्पटे को अपनाया,
बचपन से ही लोगों ने समझाया…. मां ने बोला दुपट्टा फैला के रखना,
लड़के कुछ भी बोले, लेकिन तुम कभी कुछ ना कहना,
क्योंकि तुम बेटी हो, तुम्हें तो ज़िन्दगी भर है सहना,
बचपन से ही हर किसी का था यही कहना
बेटी हो बच के रहना, मैंने मां की बातों को ज़िन्दगी में उतार लिया,
बड़ी सी कमीज़, और तन को ढकने का पायजामा सिला लिया,
देर रात तक बाहर ना रहना, पापा की इज्जत हो,
इन सब बातों को, हर किसी ने मेरे सुबह का नाश्ता बना दिया,
चाय में शक्कर के साथ इन बातों को भी मिला दिया ।।
एक दिन बाहर गई ….फैलाकर दुपट्टा, बालों की सीधी चोटी, क्योंकि मां ने बोला था
jeans, top, hairstyles ऐसी लड़कियां safe नहीं होती, आगे बढ़ी तो एहसास हुआ …
कोई मेरे पीछे हैं, मन घबराया, दिल जोर से चिल्लाया, लेकिन माँ की बाते याद आ गयी...
सूट, सलवार, सीधी चोटी. ..और मैं लड़की ……
मुझे चिल्लाने का तो हक ही नहीं था, मेरे कदम रुक से गए थे.. मेरी साँस थम् सी गई थी,
बस उस वक्त पापा की इज्जत सामने आ खड़ी थी।।
ना रात थी, ना jeans था ….
यूँ दबोच मुझे नीचे गिराया, चिल्लाती भी तो कैसे?? माँ ने कभी चिल्लाना नहीं सिखाया,
रोई चिल्लायी कोई सुनने वाला नहीं था,
मेरे जिस्म की नुमाइश, कोई ढकने वाला नहीं था ।।
लड़ी उस दम तक, जब तक पापा की इज्जत बचा सकती थी,
रोई गिड़गिड़ायी जब जब माँ की बाते याद आती थी, हैवानियत जब हद से पार हो गई,
उस वक़्त मैं खुद से भी हार गई जीना चाहती थी, बोलना चाहती थी,
अपने माँ के अंगना फिर से खेलना चाहती थी।।
बोलूँ भी तो किससे?? कौन मेरी बाते सुनेगा?
जीभ कटी मेरी, कौन मेरी आवाज़ बनेगा????
हड्डी तोड़े, पैर तोड़े इस दरिन्दगी को दुनिया से कौन कहेगा??
मेरे चरित्र पर अब उठे सवालों पर, अब कौन लड़ेगा??
फ़िर भी मैं लड़ना चाहती थी, इन दरिंदो से ।।
लेकिन अब मैं अकेली हो गई थी आँखें बंद कर,
न्याय की उम्मीद लिये मैं हमेशा के लिए सो गई थी।।
लेकिन माँ से बहुत सारे सवाल अधूरे रह गए,
Jeans, top, सूट सलवार, रात दिन ??
माँ इनमें से अब क्या चुने ????
ना मुझे Candle March चाहिए,
ना ही Poster March चाहिए ।।
मैं भी इस देश की बेटी हूँ ,
मुझे अब बस न्याय चाहिए …….