न्याय की खोज में निकले पर न्याय
न्याय की खोज में निकले पर न्याय
न्याय की खोज में निकले पर न्याय कहीं मिला नहीं,
कुल का दीपक सबको सुहाए,
जग को रोशन करती बेटियां क्यों घुट घुट कर मर जाए।
बेटी को लोक लाज की बाते सारा जग समझाए,
क्यों बेटों को कोई नारी की लाज का महत्व ना समझाए।
चारों ओर है भेड़िए यहां इंसान की खाल में,
दम तोड़ देती है बेटियां दरिंदे घूमते है आज़ाद समाज में।
नारी को पूजता है समाज बना कर देवियां मंदिरों में,
पर क्यों नहीं नारी का सम्मान हमारे समाज में।
राजनीति का चश्मा सत्ता में बैठे लोगों ने पहना था,
उस बेटी की चीखों को राजनीति के शोर ने ही दबाया था।
क्या गुजरी होगी उस बेटी पर जिसको दरिंदों ने नोचा था,
ना जाने न्याय कहा छुपा बैठा था।
उस बेचारी के ख्वाब उसके जिस्म सबको ख़तम कर दिया,
अपनी हैवानियत में नारी की
लाज को तार तार कर दिया।
एक बेटी की उड़ानों पर लाखों पाबन्दियों को लगा दिया,
क्यों नहीं बेटों को पहले ही हदों में रहना नहीं सीखा दिया।
किसी पिता की वो भी बेटी थी,
जिसकी इज्जत तुमने कुचली थी।
क्या कसूर था उसका क्या वो एक बेटी थी,
इंसाफ के नाम पर सबके मुंह पर चुप्पी थी।
अपनी मर्दानगी एक बेटी के जिस्म पर निकालते हो,
इस हवस और हैवानियत को मर्दानगी कहते हो।
एक बेटी किन हालातों से गुजरती है तुम क्या जानते हो,
तन्हा सफ़र करने से डरती है और तुम आज़ादी से जीते हो
बलात्कार के केस बस फाइलों में ही बन्द रह जाते है,
टीवी अख़बार भी एक बेटी पर हुए जुर्म को भूल जाते है।
एक बेटी को इंसाफ मिलने में क्यों बरसो बीत जाते है,
आखिर क्यों लाखों परिवार न्याय से वंचित रह जाते है।