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Malti Mishra

Tragedy

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Malti Mishra

Tragedy

इतनी क्या जल्दी थी माँ

इतनी क्या जल्दी थी माँ

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मुझको इस दुनिया में लाई

अनगिन कष्टों को सहन किया।

नाना जिद नाना नखरों को

हँसकर तूने वहन किया।


कुछ और समय इस दुनिया को

माँ तूने सहन किया होता।

इतनी क्या जल्दी थी माँ

एक बार मुझे कहा होता।

अंतिम पल के उन कष्टों का

कुछ मैंने दर्द सहा होता।।


माँ तुझको जब-जब कष्ट हुआ

मुझ तक न हवा लगने पाई।

खुद क्रूर काल की ग्रास बनी

मुझको न खबर होने पाई।


काश हमारी अनुमति का भी

विधि ने सुविधान लिखा होता।

इतनी क्या जल्दी थी माँ

एक बार मुझे कहा होता।

अंतिम पल के उन कष्टों का

कुछ मैंने दर्द सहा होता।।


छोड़ गई तू मुझे अकेली

गैरों की इस भरी भीड़ में।

रक्खा सदा सुरक्षित जिसको 

अपने आँचल के नीड़ में

काश तुम्हारा आँचल मैंने

मुट्ठी में तेज गहा होता।


इतनी क्या जल्दी थी माँ

एक बार मुझे कहा होता।

अंतिम पल के उन कष्टों का

कुछ मैंने दर्द सहा होता।।


घर से जब मुझको विदा किया 

तू मुझे अंक भर रोई थी।

खुद विदा हुई जब दुनिया से

मैं तुझसे लिपट न रो पाई।


दूर हुई तेरी छाया को

मैंने महसूस किया होता।

इतनी क्या जल्दी थी माँ

एक बार मुझे कहा होता।

अंतिम पल के उन कष्टों का

कुछ मैंने दर्द सहा होता।।


आता है जो इस दुनिया में

एक रोज है उसको जाना।

विधना का यह अटल नियम

कटु है पर जग ने है माना।


इससे लड़ने की कोशिश को

मैंने भी अगर जिया होता।

इतनी क्या जल्दी थी माँ

एक बार मुझे कहा होता।

अंतिम पल के उन कष्टों का

कुछ मैंने दर्द सहा होता।।


तुम दूर भले मुझसे थीं पर

तेरा आशीष घनेरा था।

वो साथ रहा स्पर्श हाथ का

जो तूने सिर पर फेरा था।


अब वो छाया वो स्पर्श नहीं

सूख गया ममता का सोता।

इतनी क्या जल्दी थी माँ

एक बार मुझे कहा होता।

अंतिम पल के उन कष्टों का

कुछ मैंने दर्द सहा होता।।


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