जोकर
जोकर
तुम सब जैसा मानव मैं पर,
अपनी कोई पहचान नहीं।
जोकर बन सभी हँसाता हूँ,
अपने भावों को दबा कहीं।
दिल में बहता गम का सागर,
होंठों पर हँसी जरूरी है।
तन्हा छिप-छिपकर रोते हैं,
बाहर हँसना मजबूरी है।
जोकर बन खुशियाँ बाँटी हैं,
दुहरा जीवन हम जीते हैं।
यूँ बूँद-बूँद रिसते गम को,
हम घूँट-घूँट कर पीते हैं।
पहना चेहरे पर चेहरा,
अपना चेहरा छिपाते हैं।
हिय दर्द भरा घन उमड़े जब,
हम नव खुशियाँ बरसाते हैं।
