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Sarika Bansode

Tragedy

4  

Sarika Bansode

Tragedy

माई

माई

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माई मेरी बात तूझे काहे समझ ना आये

पराया मुझे तू बोल बोलकर काहे युंही रूलाये ?

तू भी तो हैं औरतही #माई क्यु समझ ना पाये 

बाप का घर हैं पराया तो पती का घर कैसे अपनाये ?


शादी बिहाके तू घरसे निकाले

वो शादी तोडके घरसे निकालेगा

बोल माई फिर जाये कहां हम कहां होगा घर हमारा ?

रास्ते पर रहकर कैसे होगा हमारा गुजारा ?

बार बार तू दोहराये माई हमारा जो ये घर नहीं हैं

मां बाप का कुछ अपना नहीं तो

परायी चीजें कैंसे अपनावू मैं माई ?


माना साथी की जरूरत होगी जिंदगी के हर मकाप पे,

मैं खुद भी तो जरा संंभल जावू माई, की जरूरत

आने पर उसको भी तो मैं संभाल पाउ माई।

दो पहिए की गाडी का 

मैं भी ईक पहियां बन पाऊँ

"काबील" कोई मिले मुझको माना बात तेरी सही ही हैं


पर मैं भी खूद "काबील" बन जाऊँ

माई ये भी तो बात गलत नहीं हैं।

काहे ताने सुने हम सबके की कोई काम की नहीं हो,

खा पीके बस सोतीही हो

और कहां कुछ करती हो ?


मैं भी तो छलांगें लगाऊं माई, अपने परोंके भरोसे पर...

ताकी कोई कहे ना सके

हमारा कोई वजूद नहीं हैं।

ना काटो हमारे पर माई दे देके उमर की दुहाई 

अरे हर मौसम के बदलते ही,

आती हैं देखो फिर हरियाली 

मारो ऊमर को गोली माई

खुलकर जरा जीने तो दो

जीने के हैं रंग हजार

चंद तो हमें जीने दो।


मान लो हमारी बात माई

कहानी अपनी एक ही हैं

जो बाते तू कर ना पायी

किस्मत ने फिरसे हैं वो दोहरायी

मुझे तो खुलकर जीने दे

जो पल तू ना जी पायी

औरत औरत को समझ ले

चाहे बेटी हो या हो माई 


फिर कैसे चलेगी माई वोही कहानी घर घर की ?

शादी बीहा हम कर लेंगे 

बस जरा काबील तो होने दो,

ताकी कोई फिरसे ना कहे

यहां तुम्हारा कोई "वजूद" नहींं हैं।


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