जिंदगी के नाम पे
जिंदगी के नाम पे
हर दुनियादारी का बोझ
कब तक लडकी उठाती रहे ?
खुदको अंदर ही अंदर मारकर,
जिंदगी के नाम पे रोज रोज मरती रहे?
जब पैदा हुयी तो पराये धन का टॅग मिला,
जिंदगी कटती रही पर
महेमानो जैसा सुलूक हुआ
माँ बाप की इज्जत के लिये
मैने सब अरमानों का खून किया
ये मत करना वो मत करना
कब तक ये सहते रहे
जिंदगी के नाम पे रोज रोज मरती रहे?
खैर यहां उमर तो सिर्फ लडकी की बढ़ती हैं
लडको की तो बुडापे तक जवानी रहती हैं
बच्चे पैदा करने के लिये उसे उम्र की दौड़ में दौड़ मिलती है
वरणा कौनसी लडकी
खेलने कुदने की उमर में माँ बनती है?
आखिर कब तक वो अपनी जिंदगी बेचती रहे
जिंदगी के नाम पे रोज रोज मरती रहे?
नहीं चाहती वो भी कभी
20-25 की उमर में उसकी शादी हो
या कभी क्यूँ ना चाहें की कभी उसकी शादी ही ना हो
घर गृहस्थी बसाये तो महान
वरणा कूलटा बन जाती हैं
पराये मर्द से दोस्ती करे तो
वो अपनी हद मे नहीं
2-4 अफ़ेयर करने के बाद भी, पुरुषो की मर्यादा खोती नहीं
आखिर कब तक, ये मानहानी सहती रहे
जिंदगी के नाम पे रोज रोज मरती रहे?
जिंदगी के नाम पे रोज रोज मरती रहे?