जिंदगी की कश्मकश में
जिंदगी की कश्मकश में
दौड़ते ही जा रहे हैं
जिंदगी की कश्मकश में
जिंदा तो बस नाम के हैं
जिंदगी कहीं दूर छूट गयी है
आगे बढ़ने की रेस में
दौड़ते ही जा रहे हैं
जिंदगी की कश्मकश में I
पेड़ के झूले निकलकर
आंगन में आकर बस गये
झूलनेवाले वो नन्हे नन्हे फुल
पता नहीं कहाँ खो गये
हैरान हैं दीवारें भी
क्यूँ खामोश हैं लोग
अजीब से सन्नाटे में
दौड़ते ही जा रहे हैं
जिंदगी की कश्मकश में
जिंदा तो बस नाम के हैं
जिंदगी कहीं दूर छूट गयी है
आगे बढ़ने की रेस में I
बचपन में काग़ज़ की नैय्यI
बेशुमार खुशिया देती थी
तितली के पीछे भागना
गाडी के टायर के पीछे
सबसे आगे दौड़ लगाना
पिझ्झा विज़्ज़ कुछ भी नही था
सब सुख मिलते थे
चूल्हे पे बनी रोटी में
अब,दौड़ते ही जा रहे हैं
जिंदगी की कश्मकश में I
जिंदा तो बस नाम के हैं
जिंदगी कहीं दूर छूट गयी है
आगे बढ़ने की रेस में I
दौड़ते दौड़ते,वो सब पा लिया है,
जिसको पाने के लिये
सबको छोड़ आये थे
फिर भी सुकून मिला नहीं
ना आयी कभी होंठों पे हसी
समझ ही आता नही
खुशिया कहां मिलती हैं
आज कल बात करणे को भी
अर्जियां लिखनी पडती हैं
वहम सा है, ये जो कुछ भी है
जिंदगी तो मिलती हैं
छोटी छोटी बातों में
और,
दौड़ते ही जा रहे हैं सब
जिंदगी की कश्मकश में I
जिंदा तो बस नाम के हैं
जिंदगी कहीं दूर छूट गयी है
आगे बढ़ने की रेस में...