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Brajendranath Mishra

Action

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Brajendranath Mishra

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इरादों को जगाता हूँ

इरादों को जगाता हूँ

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नींद  भरी आँखों में सुनहरे सपने लेकर सो जाता हूँ । 

कुछ यादों को सुलाकर, कुछ इरादों को जगाता हूँ ।


उन बसेरों के सायों के पीछे जिसे  छोड़ आया हूँ। 

अपनी हथेली पर मुड़े तुड़े खत के वादों को जलाता  हूँ। 


वक्त बेतरतीब सी सजती, संवरती रौशनी का बसेरा है,

उसी से उजालों के रेशे बुनता हूँ, राहों को सजाता हूँ।


एक बूढ़ा पेड़ जो जागता, रोता रहा, रात - रात भर।

उस की छाँव में हर सुबह उसी से इशारों में बतियाता हूँ।


आज से तौबा कर ली मैंने, सीधे-सीधे सच कहने से, 

उसे दफन कर, झूठ से संवादों का सिलसिला चलाता हूँ। 


एक नदी जो इठलाती हुई बहती जा रही छल - छल कर,

उसके समन्दर तक पहुँचने की कहानी उसी से बताता हूँ ।


किसी शहंशाह ने बनवाया, ऐशगाह दरिया के किनारे पर

वक्त में गुम करीबी झोंपड़ियों के फरियादों को सुनाता हूँ।



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