मेरा प्रतिबिंब
मेरा प्रतिबिंब
पीले निर्जन पहाड़ों वाली सृष्टि में;
कोई अस्तित्व नहीं मेरा।
संपूर्ण ब्रह्मांड अनजान उपेक्षित;
मेरे ही अस्तित्व से।
कागज पर स्याही से लिखें
और अर्थ खो चुके शब्दों सी
मेरी कैफियत।
लेकिन स्वयं के अंतस मे भरे नीले,
निर्झर ,स्वच्छ पारदर्शी पानी में
चमकता प्रतिबिंब मेरी आत्मा का !
शुद्ध ,पवित्र, चमकीला, निरभ्र;
बिल्कुल किसी दलित रजत सा।