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Ajay Topwar

Abstract

4.0  

Ajay Topwar

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मैं और पहाड़

मैं और पहाड़

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अब मैं 

खामोश नहीं रहूँगा

समंदर की तरह ।

फटूँगा मैं ज्वालामुखी की तरह मेरे के गाँव पहाड़ से।

भले ही, मेरी आवाज दबा दी गई है अतीत में 

शहर से आती भीड़ की शोर से

"विकास चाहिए

बुलेट ट्रेन चाहिए

कोयला चाहिए 

बाॅक्साइट चाहिए 

कच्चा लोहा चाहिए

डैम चाहिए

फील्ड फायरिंग रेंज चाहिए"

आदिकाल से

मैं और पहाड़ का रिश्ता  

गहरा रहा है ईश्वर और उसके भक्त की तरह।

मेरी पहचान, 

मेरा अस्तित्व, 

मेरी संस्कृति ,

मेरी भाषा-बोली

पहाड़ से है 

और पहाड़ से मेरी।

जल,जंगल,जमीन की लड़ाई तब थी 

आज भी है, लड़ाई जारी है, 

संघर्ष जारी रहेगा कलम से।

मैं खामोश नहीं रहूँगा,

मेरे गाँव के पहाड़ की चोटी से

विरोध का स्वर गूँजता रहेगा।

लौटा दो 'मैं और पहाड़'।।


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