मंजिल दूर नहीं!
मंजिल दूर नहीं!
हे राही! चलता जा अपनी राह में, नहीं अब मंजिल दूर
तुझे चलना ही तो है अपनी मंजिल याद कर
सफर कितना ही कठिन क्यों न हो,
रुकना है तुझे यह भूल न कर
हे राही! चलता जा अपनी राह में, नहीं अब मंजिल दूर।।
चलते-चलते सुबह से शाम हो जाए
चलते-चलते पैर में छाले पड़ जाए
शरीर थककर चूर-चूर हो जाए
तुझे चलना ही तो है अपनी मंजिल याद कर
हे राही! चलता जा अपनी राह में, नहीं अब मंजिल दूर।।
भूखे-प्यासे राह चल रहा हूं ना रोटी ना पानी
जिन्दगी का सफर है या मौत की कहानी
यह सोचकर अपना हौसला परास्त न कर
तुझे चलना ही तो है अपनी मंजिल याद कर
हे राही! चलता जा अपनी राह में, नहीं अब मंजिल
दूर।।
सामने खड़ा है बड़ा पहाड़, सफर का रोड़ा
तुझे क्या लगता है, क्यों है ये खड़ा
अटल, अचल कितना बड़ा है इरादा तेरा
इम्तहान का वक्त है संभलकर जरा
अब रोकर अपना बुरा हाल न कर
हे राही! अपना हौसला बुलंद कर
हे राही! चलता जा अपनी राह में, नहीं अब मंजिल दूर।।
लोग कहेंगे रूक जा ठहर जा जरा सुस्ता ले
दोपहर का समय है, धूप का कहर है जरा आराम कर ले
किसकी सुनेगा क्या कहेगा अपनी अंतरात्मा से पूछ ले
रुकना है मुझे यह भूल न कर
हे राही! चलता जा अपनी राह में, नहीं अब मंजिल दूर।।
सुनो! हे राही! तुम्हारा धर्म चलना है
थककर भी रुकना नहीं आगे बढ़ना है
संकल्प ले हारकर भी तुझे जीतना है
मंजिल के करीब आने पर हौसला दुगुना कर
हे राही! चलता जा अपनी राह में, नहीं अब मंजिल दूर।।