मूक अंतर्द्वंद्व।
मूक अंतर्द्वंद्व।
उन अनगिनत आंखों से
अश्रु के मोती बिखर रहे थे।
प्रयास में विफल हुई धड़कनों
का वो मूक अंतर्द्वंद्व का क्रंदन।
आंखों में टूटे सपनों की वेदना का वो स्वर,
पाषाणभेद मूक पुकार ,उन उम्मीदों के मोतियों का भार,
देख हृदय मोम की तरह ऐसे पिघलता है,
जैसे वर्षों से तनकर खड़ा हिमालय
धीरे- धीरे गलता है।
काश! अपने हाथों में ,मैं
इन लाखों उम्मीदों को समेट पाती,
हर आंख से वो असफल मोती पोंछ पाती,
कल के भविष्य के सुनहरे सपनों के मिथक भ्रम ने
जीवन इनका महासंग्राम और बोझिल बना दिया है।
स्वतंत्रता के बाद भी बौद्धिकता को इनकी
शिक्षा के अंधेरे दायरों में बन्दी बना दिया है।
आओ! मिलकर शिक्षा को नई दिशा दिखाए हम
शिक्षक बनकर भारत का भविष्य उज्ज्वल बनाए हम,
हर हाथ को कलम की ताकत से अवगत कराए
अशिक्षा का अंधकार मिटाएंगे , शिक्षा का प्रकाश फैलाए।
नए दौर के नव भारत की नींव सशक्त बनाए।
